25-12-69 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन

“अनासक्त बनने के लिए तन और मन को अमानत समझो” 

बापदादा को कहाँ बुलाया है और किसलिये? अभी कहाँ बैठे हो? मधुबन में तो हो लेकिन मधुबन में भी कहाँ बाप आये हैं? फुलवारी में बैठे हो या महफिल में? बापदादा रूहानी रूहों को देख रहे है और साथ-साथ हरेक फूल से निकले हुए रूह की खुशबुएं भी ले रहे हैं। जैसे वह लोग फूलों से इसेन्स निकालते है, उनको रूह कहते हैं। उनकी खुशबू बहुत अच्छी और मीठी होती है। तो यहाँ मधुबन में रहते भी आज रूहानी दुनिया का सैर कर रहे हैं। आप सभी को भी रूहानी रूप में रहकर के हर कर्म करना है तब सर्विस में वा कर्म में रौनक आयेगी। अभी नवीनता चाहते हो ना। वा जैसे चल रहे हैं उसमें सन्तुष्ट हो? नई रौनक तब आयेगी जब हर कर्म में, हर संकल्प में, वाणी में रूहानियत होगी। रूहानियत कैसे आयेगी? इसके लिये क्या करना है जो रूहानियत सदा कायम रहे? क्या बदलना है? (हरेक ने भिन्न-भिन्न बातें सुनाई) यह तो है मुख्य बातें जो सभी को पक्की ही हैं। परन्तु रूहानियत न रहने का कारण क्या है? वफादार, फरमानवरदार क्यों नहीं बन पाते हैं? इसकी बात है (सम्बन्ध की कमी) सम्बन्ध में कमी भी क्यों पड़ती है? निश्चयबुद्धि का तिलक तो सभी को लगा हुआ है। यह प्रश्र है कि रूहानियत सदा कायम क्यों नहीं रहती है? रूहानियत कायम न रहने का कारण यह है कि अपने को और दूसरों को जिनके सर्विस के लिये हम निमित्त हूँ, उन्हों को बापदादा की अमानत समझ कर चलना। जितना अपने को और दूसरों को अमानत समझेंगे तो रूहानियत आयेगी। अमानत न समझने से कुछ कमी पड़ जाती है। मन के संकल्प जो करते हैं वह भी ऐसे समझ करके करें कि यह मन भी एक अमानत है। इस अमानत में ख्यानत नहीं डालनी है। दूसरे शब्दों में आप औरों को ट्रस्टी कहकर समझाते हो ना। उन्हों को ट्रस्टी कहते हो लेकिन अपने मन और तन को और जो कुछ भी निमित्त रूप में मिला है, चाहे जिज्ञासु हैं, सेन्टर है, वा स्कूल कोई भी वस्तु है लेकिन अमानत मात्र है। अमानत समझने से इतना ही अनासक्त होंगे। बुद्धि नहीं जायेगी। अनासक्त होने से ही रूहानियत आवेगी। इतने तक अपने को शमा पर मिटाना है। मिटाना तो है लेकिन कहाँ तक। यह मेरे संस्कार हैं, यह मेरे संस्कार शब्द भी मिट जाये। मेरे संस्कार फिर कहाँ से आये, मेरे संस्कारों के कारण ही यह बातें होती हैं। इतने तक मिटना है जो कि नेचर भी बदल जाये। जब हरेक की नेचर बदले तब आप लोगों के अव्यक्ति पिक्चर्स बनेंगे। संगमगुग की सम्पूर्ण स्टेज की पिक्चर्स क्या है? फरिश्ते में क्या विशेषता होती है? एक तो बिल्कुल हल्कापन होता है। हल्कापन होने के कारण जैसी भी परिस्थिति हो वैसी अपनी स्थिति बना सकेंगे। जो भारी होते हैं, वह कैसी भी परिस्थिति में अपने को सैट नहीं कर सकेंगे। तो फरिश्तेपन की मुख्य विशेषता हुई कि वह सभी बातों में हल्के होंगे। संकल्पों में भी हल्के, वाणी में भी हल्के और कर्म करने में भी हल्के और सम्बन्ध में भी हल्के रहेंगे। इन चार बातों में हल्कापन है तो फरिश्ते की अवस्था है। अब देखना है कहाँ तक इन 4 बातों में हल्कापन है। जो हल्के होंगे वे एक सेकेण्ड में कोई भी आत्मा के संस्कारों को परख सकेंगे। और जो भी परिस्थिति सामने आयेगी उनको एक सेकेण्ड में निर्णय कर सकेंगे। यह है फरिश्तेपन की परख। जब यह सभी गुण हर कर्म में प्रत्यक्ष दिखाई दे तो समझना अब सम्पूर्ण स्टेज नजदीक है। साकार रूप की सम्पूर्ण स्टेज किन बातों में नजर आती थी? मुख्य बात तो अपने सम्पूर्ण स्टेज की आपेही परख करनी है - इन बातों से। इस ग्रुप का मुख्य गुण कौनसा है? वह ग्रुप था यज्ञ स्नेही। और यह ग्रुप है यज्ञ सहयोगी।

यह सहयोगी में तो सभी पास हैं। बाकी क्या करना है? ऐसी भी स्थिति होगी जो किसके मन में जो संकल्प उठेगा वह आपके पास पहले ही पहुँच जायेगा। बोलने सुनने की आवश्यकता नहीं। लेकिन यह तब होगा जब औरों के संकल्पों को रीड करने के लिये अपने संकल्पों के ऊपर कुल ब्रेक होगी। ब्रेक पावरफुल हो। अगर अपने संकल्पों को समेट न सकेंगे तो दूसरों के संकल्पों को समझ नहीं सकेंगे। इसलिये सुनाया था कि संकल्पों का बिस्तर बन्द करते चलो। जितनी-जितनी संकल्पों को समेटने की शक्ति होगी उतना-उतना औरों के संकल्पों को समझने की भी शक्ति होगी। अपने संकल्पों के विस्तार में जाने के कारण अपने को ही नहीं समझ सकते हो तो दूसरों को क्या समझेंगे। इसलिये यह भी स्टेज नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार आती रहेगी, यह भी सम्पूर्ण स्टेज की परख है। कहाँ तक सम्पूर्ण स्टेज के नजदीक आये हैं। उनकी परख इन बातों से अपने आप ही करनी है।

यह आलराउण्डर ग्रुप है। आलराउण्डर का लक्ष्य क्या होता है? लक्षण है लेकिन जो लक्ष्य रखा है वह कुछ और आगे का रखना चाहिए। अब तक जो प्रैक्टिकल में है उस हिसाब से कौन से राजे गिने जायेंगे? अभी के सर्विस के साक्षात्कार प्रमाण कौन से राजे बनेंगे? पुरुषार्थ से पद तो स्पष्ट हो ही जाता है। भल सूर्यवंशी तो हैं लेकिन एक होते है विश्व के राजे, तो विश्व महाराजन् के साथ अपने राज्य के राजे भी होते है। अब बताओ आप कौनसे राजे हो? शुरू में कौन आयेंगे? विश्व के महाराजन् बनना और विश्व महाराजन् के नजदीक सम्बन्धी बनना इसके लिए कौनसा साधन होता है? विश्व का कल्याण तो हो ही जायेगा। लेकिन विश्व के महाराजन् जो बनने वाले है, उन्हीं की अभी निशानी क्या होगी? यह भी ब्राह्मणों का विश्व है अर्थात् छोटा सा संसार है तो जो विश्व महाराजन् बनने है उन्हों कहा इस विश्व अर्थात् बाह्मणकुल की हर आत्मा के साथ सम्बन्ध होगा। जो यहाँ इस छोटे से परिवार, सर्व के सम्बन्ध में आयेंगे वह वहाँ विश्व के महाराजन बनेंगे। अब बताओ कौन से राजे बनेंगे? एक होते हैं जो स्वयं तख्त पर बैठेंगे और एक फिर ऐसे भी है जो तख्त नशीन बनने वालों के नजदीक सहयोगी होंगे। नजदीक सहयोगी भी होना है, तो उसके लिये भी अब क्या करना पड़ेगा? जो पूरा दैवी परिवार है, उन सर्व आत्माओं के किसी न किसी प्रकार से सहयोगी बनना पड़ेगा। एक होता है सारे कुल के सर्विस के निमित्त बनना। और दूसरा होता है सिर्फ निमित्त बनना। लेकिन किसी न किसी प्रकार से सर्व के सहयोगी बनना। ऐसे ही फिर वहाँ उनके नजदीक के सहयोगी होंगे। तो अब अपने आप को देखो। विश्व महाराजन् बनेंगे ना? नम्बरवार विश्व महाराजन् कौनसे बनते हैं, वह भी दिन-प्रतिदिन प्रत्यक्ष देखते जायेंगे। ऐसे नहीं कि अभी नहीं बन सकते हैं। अभी भी जम्प दे सकते है। मेकप करने का अभी समय है, लेकिन थोड़ा समय है। समय थोड़ा है मेहनत विशेष करनी पड़ेगी। लेकिन मेकप कर सकते हो। विश्व के महाराजन् के संस्कार क्या होंगे? आज बापदादा विश्व के महाराजन् बनाने की पढ़ाई पढ़ाते हैं। उसके संस्कार क्या होंगे? जैसे बाप सर्व के स्नेही और सर्व उनके स्नेही। यह तो प्रैक्टिकल में देखा ना। ऐसे एक-एक के अन्दर से उनके प्रति स्नेह के फूल बरसेंगे। जब स्नेह के फूल यहाँ बरसेंगे तब इतने जड़ चित्रों पर भी फूल बरसेंगे। तो यहाँ भी अपने को देखो कि मुझ आत्मा के ऊपर कितने स्नेह के पुष्पों की वर्षा हो रही है। वह छिप नहीं सकेंगे। जितने स्नेह के पुष्प उतने द्वापर में पूजा के पुष्प चढ़ेगे। कहाँ-कहाँ कोई पुष्प चढ़ाने लिये कभी-कभी जाते हैं और कहाँ तो हर रोज और बहुत पुष्पों की वर्षा होती है। मालूम है? इसका कारण क्या? तो यही लक्ष्य रखो कि सर्व के स्नेह के पुष्प पात्र बने। स्नेह कैसे मिलता है? एक-एक को अपना सहयोग देंगे तो सहयोग मिलेगा। और जितने के यहाँ सहयोगी बनेंगे उतने के स्नेह के पात्र बनेंगे। और ऐसा ही फिर विश्व के महाराजन् बनेंगे। इसलिये लक्ष्य बड़ा रखो।

आज एक भक्तिमार्ग का चित्र याद आ रहा है। आज देख भी रहे थे तो मुस्करा भी रहे थे। देख रहे थे अंगुली देने वाले तो हैं ना। अंगुली दी भी है वा देनी है? कहाँ तक अंगुली पहुँची है? अगर अंगुली देनी है तो इसका मतलब है जहाँ तक अंगुली पहुँची है वहाँ तक नहीं दी है। पहाड उठा नहीं है। क्यों, इतना भारी है क्या? इतनों की अंगुली भी मिल गई है फिर भी पहाड क्यों नहीं उठता? कल्प पहले का जो यादगार है वह सफल तब हुआ है जब सभी का संगठित रूप में बल मिला है, इसलिये थोड़ा उठता है फिर बैठ जाता है। हरेक अपनी-अपनी अंगुली लगा रहे हैं परन्तु अब आवश्यकता है संगठित रुप में। स्वयं की अंगुली दी है लेकिन अब संगठन में शक्ति तब भरेगी जब वह बल आयेगा। अब शक्ति दल की प्रत्यक्षता होनी है। सभी फूल तो बने हैं लेकिन अब गुलदस्ते में संगठित रूप में आना है। अभी कोई पुष्प कहाँ-कहाँ अपनी लात दिखा रहे हैं, कोई अपनी खुशबू दे रहा है कोई अपना रूप दिखा रहा है। लेकिन रूप, रंग, खुशबू जब सब प्रकार के गुलदस्ते के रूप में आ जायेंगे तब दुनिया के आगे प्रत्यक्ष होंगे। अब ऐसा प्लैन बनाओ जो संगठित रूप में कोई नवीनता दुनिया के आगे दिखाओ। एक-एक अलग होने के कारण मेहनत भी ज्यादा करनी पड़ती है। लेकिन संगठन में मेहनत कम सफलता जास्ती होगी। जब संगमयुग के संगठन को सफल बनायेंगे तब सर्विस की सफलता होगी। योग्यताएं सभी हैं लेकिन योजना तक रह जाती है। अब अपनी योग्यताओं से औरों को भी बाप के समीप लाने योग्य बनाओ।

यह जो ग्रुप है यह है आत्माओं के सम्बन्ध जुड़वाने की नींव डालने वाला। जैसी नींव डालेंगे वैसे ही उन्हों की आगे जीवन बनेगी। सभी बातों में जितना खुद मजबूत होंगे उतना अनेकों की नींव मजबूत डाल सकेंगे। जितनी अपने में सर्व क्वालिफिकेशन होगी ऐसी ही क्वालिटी आयेगी। अगर अपने में क्वालिफिकेशन कम है तो क्वालिटी भी कम आयेगी, इसलिए ऐसे समझो कि हम सभी नींव डालने वाले है। अपनी क्वालिफिकेशन से ही क्वालिटी आयेगी। आपसमान तब बना सकेंगे, जब बापदादा के गुणों की समानता अपने में लायेंगे। 

अच्छा !!!